मार्क कार्नी कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री बन गए हैं। उन्होंने शुक्रवार भारतीय समयानुसार रात 8:30 बजे पीएम पद की शपथ ली। उनका शपथ ग्रहण राजधानी ओटावा के रिड्यू हॉल के बॉलरूम में हुआ। कार्नी के साथ उनके मंत्रिमंडल ने भी शपथ ली।
मार्क कार्नी भारत के साथ रिश्ते सुधारने की बात कह चुके हैं। वे दोनों देशों के रिश्तों में आए तनाव को खत्म करना चाहते हैं। चुनाव से पहले उन्होंने कहा था कि अगर वो प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को फिर से बहाल करेंगे।
हालांकि, दोनों देशों के बीच विवाद की सबसे बड़ी वजह- खालिस्तानी आतंकियों के मुद्दे पर मार्क कार्नी क्या राय रखते हैं, ये साफ नहीं है। उन्होंने अभी तक इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है।
9 फरवरी को 85.9% वोटों से जीते थे कार्नी
मार्क कार्नी ने 9 फरवरी को लिबरल पार्टी के नेता का चुनाव जीता था। कार्नी को 85.9% वोट मिले। मार्क कार्नी कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जगह सत्ता संभालेंगे। आज ही ट्रूडो ने गवर्नर जनरल के पास जाकर आधिकारिक रूप से अपना इस्तीफा दिया। इसके बाद शपथ ग्रहण हुआ।
बैंकर और इकोनॉमिस्ट हैं मार्क कार्नी मार्क कार्नी इकोनॉमिस्ट और पूर्व केंद्रीय बैंकर हैं। कार्नी को 2008 में बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर चुना गया था। कनाडा को मंदी से बाहर निकालने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए, उसकी वजह से 2013 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने उन्हें गवर्नर बनने का प्रस्ताव दिया।
बैंक ऑफ इंग्लैंड के 300 साल के इतिहास में वे पहले ऐसे गैर ब्रिटिश नागरिक थे, जिन्हें यह जिम्मेदारी मिली। वे 2020 तक इससे जुड़े रहे। ब्रेग्जिट के दौरान लिए फैसलों ने उन्हें ब्रिटेन में मशहूर बना दिया।
ट्रम्प के विरोधी हैं कार्नी, लेकिन बयान देने से बचते रहे हैं
कार्नी लिबरल पार्टी में ट्रम्प के विरोधी हैं। उन्होंने देश की इस हालत का जिम्मेदार ट्रम्प को बताया है। उन्होंने चुनाव से पहले एक बहस के दौरान कहा था कि ट्रम्प की धमकियों से पहले ही देश की हालत खराब है। बहुत से कनाडाई बदतर जीवन जी रहे हैं। अप्रवासियों की संख्या बढ़ने से देश की हालत और खराब हो गई है।
कार्नी अपने विरोधियों की तुलना में अपने कैंपेनिंग को लेकर ज्यादा सतर्क रहे हैं। PM पद का उम्मीदवार बनने के बाद से चुनाव होने तक उन्होंने एक भी इंटरव्यू नहीं दिया है।
लोकप्रिय हैं, लेकिन ज्यादा दिन PM रहने की संभावना कम
पिछले साल जुलाई में एक पोलिंग फर्म ने जस्टिन ट्रूडो की जगह लेने वाले संभावित उम्मीदवारों को लेकर सर्वे किया था। तब 2000 में से सिर्फ 140 लोग यानी 7% लोग ही मार्क कार्नी को पहचान पाए थे। जनवरी में जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद उन्होंने खुद को लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया।
इसके बाद उन्होंने लिबरल पार्टी के कई कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों का समर्थन हासिल किया, जिससे उनकी दावेदारी मजबूत हुई है। हाल ही में मेनस्ट्रीट सर्वे के मुताबिक कार्नी को 43%, वहीं पूर्व वित्तमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड को 31% वोटर्स का समर्थन मिला है।
हालांकि यह कहा नहीं जा सकता है कि कार्नी कितने समय तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे। दरअसल, लिबरल पार्टी के पास संसद में बहुमत नहीं है। प्रधानमंत्री बनने के बाद कार्नी को अक्टूबर से पहले देश में चुनाव कराने होंगे। फिलहाल वे संसद के भी मेंबर नहीं हैं, ऐसे में वे जल्द ही चुनाव करा सकते हैं।